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Monday, January 10, 2011

ये तो वक्त बतायेगा


ये तो वक्त बतायेगा
दिनांक – 8/01/2011
चारों तरफ जैसे अराजकता का माहौल सा बना हुआ है। समाचार पत्रों के मुख्य पृष्ठ पर पुलिस से लेकर व्यापारियों 2- जी घोटालों निसहाय लोगों की रैनबसेरों पर सुप्रिम कोर्ट ने सरकारों से जबाब तलब किया और फटकार लगाई की बातों से भरा पड़ा है। 2-जी घोटालों पर कपिल सिब्बल जी ने कैग की रिपोर्ट को इस समय गलत बता कर सारा का सारा दोष बीजेपी सरकार पर मढ़ दिया उनसे ये पुछा जाना चाहिए कि उस वक्त आप क्या कर रहे थे। आपने यह वक्तव्य उस समय क्यों नहीं दिया। इसके अलावा ए राजा को अपने पद से इस्तीफा क्यों देना पड़ा। आज गरीब निःसहाय व्यक्तियों को भयंकर ठंड से बचने के लिए रैनबसेरों का इन्तेंजाम नहीं हो पा रहा है। अभी कहीं घूसखोरी करना हो या बड़ा भ्रष्टाचार करना हो तो देखिए कैसे सरकारी खजाने से धन निकल पड़ेगा। यदि रैनबसेरों का निर्माण कराना हो तो देखिएगा भ्रष्टाचारियों की कैसी लाईन लग जाती है। हरेक आदमी उसमें से धन चुराने के जुगाड़ में लग जायेगा। वेशर्मियत की हद यहीं तक खत्म नहीं हो जाती है, चुनाव आने पर खीसें निपोरते हुए हाथ जोड़ कर अपने लिए गली-गली इन्हीं व्यक्तियों से वोट मागतें हुए उन्हे जरा भी संकोच नहीं होता है और न ही शर्म आती है। मजेदार बात तो यह है कि उस समय तक हमारे भारतीय समाज के यह भोली-भाली जनता उसको भुला कर उनके बहकावे में आकर ऐसे लोगों को अपना बहुमूल्य वोट दे बैठते हैं, और फिर से यह लोग अपना लूट-खसोट का धंधा चालू कर देते हैं। आज मैं देखता हूँ कि हमारे समाज के अधिक्तर लोग दुसरे को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करने के जुगाड़ में रहते हैं। जैसे कौआ कौवे का मांस नहीं खाता कौआ दूसरे पंक्षी या जानवरों का मांस खाता है।लेकिन जरा सोचें यदि हमारे समाज का प्रत्येक व्यक्ति कौवे जैसा बन जाये तो फिर कौन किसका मांस नोचेगा ?

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