- तम्बाकू की पत्तियों में निकोटिन नामक पदार्थ पाया जाता है।
- अनुवांशिकी के पिता ग्रेगर जॅान मेंडल को कहा जाता है।
- हरगोविंद खुराना को नोबेल पुरस्कार जीन DNA से संबंधित खोज के लिए मिला था।
- माइटोकांड्रिया ( Mitochondria ) को कोशिका का पावर हाउस कहते हैं।
- राइबोसोम ( Ribosome ) को प्रोटीन की फैक्ट्री कहा जाता है।
- मानव शरीर में गुणसूत्रो की संख्या 46 ( 23 जोड़ा ) होती है।
- चेचक का टीका की खोज एडवर्ड जैनर ने की थी।
- स्वस्थ मनुष्य के शरीर के रक्त का पी. एच. मान 7.4 होता है।
- लाल रक्त कणिकांए RBC का निर्माण अस्थिमज्जा में होता है।
- हल्दी तथा आलू तना का भूमिगत रूपांतरण है
- कोशिका की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक राबर्ट हुक ने की थी।
- नवजात बच्चों के शरीर में 300 हड्डियां होती है।
- मानव शरीर की सबसे लंबी हड्डी को 'फीमर' कहते है ( जांघ की हड्डी )।
- मनुष्य के शरीर की सबसे छोटी हड्डी 'स्टेप्स' है जो कान में होती है।
- मनुष्य की छाती में दोनों तरफ 12 -12 पसलियां होती है।
- RBC लाल रक्त कण की कब्रगाह यकृत और प्लीहा को कहा जाता है।
- रक्त का थक्का बनाने में विटामिन के k सहायक होता है।
- रक्त समूह ( Blood Group ) एवं आर एच तत्व ( RH Factor ) की खोज कार्ल लैंडस्टीनर ने की थी।
- AB रक्त समूह में एण्टीबॅाडी नहीं पाई जाती है, इसलिए यह सर्वग्रहता कहलाता है
- O रक्त समूह में एणटीजन नहीं होता है यह सर्वदाता कहलाता है।
- मनुष्य के हृदय का भार लगभग 300 ग्राम होता है।
- स्वस्थ मनुष्य का हृदय एक मिनट में 72 बार धड़कता है।
- स्वस्थ मनुष्य रक्त दाब 120/80 mmhg ( Systolic / diastolic ) होता है।
- यूरोक्रोम की उपस्थिति के कारण मूत्र का रंग हल्का पीला होता हैं।
- एलीसा प्रणाली ( ELISA Test ) से एड्स बीमारी के HIV वायरस का पता लगाया जाता है।
- टिटनेस से शरीर का तंत्रिका तंत्र प्रवाहित होता है।
- स्वस्थ मनुष्य के शरीर में रक्त का औसत 5 - 6 लीटर होता है।
- मनुष्य के रक्त का शुद्धिकरण किडनी में होता है।
- मानव शरीर की सबसे छोटी ग्रंथि पिट्यूटरी मस्तिष्क में होती है।
- मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि यकृत होती है।
- इन्सुलिन की खोज बैटिंग एवं वेस्ट ने की थी।
- वस्तु का प्रतिबिंब आँखों के रेटिना में बनता है।
- नेत्रदान में आँख के कार्निया को दान किया जाता है।
- सोयाबीन में सर्वाधिक प्रोटीन ( 42% ) पाया जाता है।
- जल में घुलनशील विटामिन B एवं C है।
- विटामिन सी C खट्टे फलों में पाया जाता है।
- विटामिन सी की रासायनिक नाम 'स्कर्वीक एसिड' है।
- जीव विज्ञान के जनक अरस्तू को कहा जाता है।
- जीव विज्ञान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग लैमार्क एवं ट्रेविरेनस ने किया था।
- वनस्पति विज्ञान के जनक थियोफ्रस्ट्स को कहा जाता है।
- आधुनिक वर्गीकी ( Modern taxonomy ) के पिता लीनियस को कहा जाता है।
- एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीका की खोज की थी।
- आम का वनस्पतिक नाम मेनजीफेरा इंडिका है।
- कार्बन डाई आक्साइड गैस ग्रीन हाउस प्रभाव में सबसे ज्यादा योगदान करती है।
- त्वचा का कैंसर सूर्य की पराबैंगनी किरणों से होता है।
- रेबीज के टीके की खोज एलेक्जैंडर फलेमिंग ने की थी।
- विद्युत बल्ब के अंदर आर्गन गैस भरी होती है।
- नाइट्रस आक्साइड को हंसाने वाली गैस कहा जाता है। इसकी खोज प्रीस्टले ने की थी।
- सर्वप्रथम 'आर्वत सारणी ' का निर्माण रशियन वैज्ञानिक मेंडलीफ ने किया था।
- आधुनिक आर्वत सारणी के नियम मोसले द्वारा प्रतिपादित किया गया है।
- विद्युत धारा को ऐम्पियर में मापा जाता है।
- डायनेमो उपकरण द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है।
- मोमबत्ती रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा में रूपांतरित करती है।
- प्रकाश वर्ष दूरी मापने की इकाई है। दूरी मापने की सबसे बड़ी इकाई पारसेक है।
- साधारण नमक ( सोडियम क्लोराइड NaCL ) खाने एवं आचार के परिरक्षण में उपयोग होता है।
- हीरा एवं ग्रेफाइट कार्बन के अपरूप है।
- हीरा विद्युत का कुचालक होता है तथा ग्रेफाइट विद्युत का सुचालक होता है।
- एल. पी. जी. में ब्यूटेन एवं प्रोपेन का मिश्रण होता है।
- एल. पी. जी. की तेज गंध उसमें मिले सल्फर के यौगिक ( मिथाइल मरकॅाप्टेन ) से होती है।
- चाँदी एवं तांबा विद्युत की सर्वश्रेष्ठ सुचालक है।
- टाइटेनियम को रणनीतिक धातु कहा जाता है।
- सिल्वर आयोडाइड कृत्रिम वर्षा के लिए प्रयोग किया जाता है।
- मतदाताओं की अंगुलियों में निशान के लिए सिल्वर नाइट्रेट लगाया जाता है।
- तड़ित चालक का आविष्कार बेंजामिन फैकलिन ने किया था।
- शुष्क बर्फ़ ठोस कार्बन डाइआक्साइड होता है।
- प्लेटेनियम को सफेद स्वर्ण कहा जाता है।
- क्लोरीन गैस फूलों का रंग उड़ा देती है।
Hamara.Samaj (हमारा समाज )
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ज्ञान विज्ञान
Sunday, August 21, 2011
एक के बाद एक अड़ंगे ।
एक के बाद एक अड़ंगे ।
दिनांकः-21/8/2011
आज भारत के दूसरे गांधी कहलाए जाने वाले अन्ना हजारे के अनशन को लेकर जहां पूरे राष्ट्र में अनशन और प्रदर्शन करने की होड़ सी मची हुई है, वहीं विदेशो मे भी इसकी चर्चाए हैं। जैसा कि अन्ना हजारे का अनशन सोलह 16 अगस्त 2011 से दिल्ली के जेपी पार्क मे शुरु होने वाला था लेकिन सरकार ने अपने एक गुप्त रणनीति के तहत अन्ना हजारे को गिरफ्तार कर जेल मे डाल भेज दिया। वास्तव मे सरकार ने यह कोशिश मे लगी हुई थी कि अन्ना हजारे को 144 के उल्लंघन का हवाला देते उन्हें जेल मे डाल दिया जाए और फिर उनके अनशन की हवा निका कर बाबा रामदेव की तरह अन्ना को दिल्ली से बाहर उनके गाँव पहुँचा दिया जाए। लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा, सरकार का ही दांव खुद सरकार पर ही उल्टा पड़ गई। और अन्ना की जिद के आगे सरकार हक्की-बक्की रह गई । केंद्र की इस कार्यवाही की वजह से सम्पूर्ण राष्ट्र के लोगों के गुस्सा की आग मे घी का काम किया जिसके परिणाम स्वरुप पूरे देश को इस आग की लपटों ने अपने आगोश मे ले लिया, और देश के हर कोने-कोने में लोगो ने “वंदे मातरम”, “जय दिन्द”, “अन्ना हम तुम्हारे साथ हैँ” जैसे नारे लगा कर अपना विरोध प्रदर्शन करते हुए बहुसंख्यक लोग अपने-अपने घरों से निकल कर अन्ना के अनशन को चार-चाँद लगा कर आसमान के बुलंदीयो तक पहुँचा दिया। इस तरह का नजारा आज 64 बर्षो के बाद एक बार फिर दिखाई पड़ा। हमारे देश के जन मानस ने यह अनुभव किया कि भारत माँ की हम सभी संताने हिन्दु हो चाहे मुसलमान सभी इस भ्रष्ट्चार और भ्रष्ट्चारीयों के विरोध मे एक साथ अपने घरों से निकल कर अन्ना के साथ सड़कों पर आ खड़े हुए। जाँहा तक इस हुजूम में गरीब,मध्यम और अमीर लोगों की बात है जहाँ तक अंग्रेजी शासन की बात है अमीर तबके के लोगों को उस समय के अंग्रेजी शासन से कोई खास तकलीफ नही थी और आज भी उन्हें भ्रष्टाचार से कोई खास फर्क पड़ने वाला नही है जो पहले से अमीर थे वह लोग तो हैं ही वल्कि आज भ्रष्टाचार कर के बने अमीरो ने अमीरो की संख्या मे और इजाफा हो गया। इस भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा हमारे देश के गरीब या मध्यम वर्ग जनता ही शोषण और अत्याचार के शिकार हुए। इस अत्याचार शोषण और भ्रष्टाचार से त्रस्त होकर आज सड़को पर उतर आयें हैँ। इस जन सैलाव को यदि इस समय संतुष्ट कर नियंत्रित नही किया गया तो आने वाले कुछ एक दिनो मे यह जन सैलाव विकराल रुप मे परिवर्तित होते देर नही लगेगी। लेकिन लोकपाल बिल की इस लड़ाई में अब तीसरा पक्ष भी धिरे-धिरे सक्रिय होने लगा है। इस तीसरे पक्ष की ओर से अरुणा राय ने कहा है कि सरकार ने जो लोकपाल बिल संसद में पेश किया है, उसमें हमारी बातें कतई शामिल नहीं हुई हैं। इसलिए हम स्टैंडिंग कमेटी के सामने अपनी बात को अवश्य रखेंगे। जैसा कि स्थायी संसदीय समिति ने लोकसभा में पेश लोकपाल बिल पर सभी को अपने सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया है। इस तरह एक तरफ यह भी लोकपाल बिल पर यह अंदेशा है कि कहीं ऐसा न होए कि फिर कुछ दिनो बाद एक और संस्था चौथा पक्ष फिर पाँचवा पक्ष सामने आ कर कहे कि हमाने जो बिल बनाया उसे भी स्डैंडिंग कमेटि के सामने रखा जाए इस तरह पुरे देश से एक के बाद एक बिल आते रहेगें तो इस पर सरकार को या स्डैंडिंग कमेटि को मौका मिल जाएगा कि हम किसी भी बिल को नही वल्कि सरकारी लोकपाल बिल को संसद ही संसद से पारित करा लेगें। यह बात अधिक्तर लोगों के गले नही उतरती है कि यह तिसरा पक्ष अभी तक कहां पर सोए हुऐ थे, लगता है उन्हें अन्ना के लोक प्रियता को देख कर अपने लिए भी लोक प्रियता जुटाने और लोकपाल बिल पर राजनीति करने लगे। और अब कहने लगें कि हमारे लोकपाल बिल के सुझावों को भी स्डैंडिंग कमेटि के सामने रखा जाए। इस तरह तो हमारे देश के प्रबुद्ध लोग भी रोज एक बिल बना कर स्डैंडिंग कमेटि के सामने रक्खने लगेंगे या रक्खे जाने की बात दोहराएगें। अगर इस पर अभी सोचा नही गया तो इस लोकपाल बिल के पास होना हम भारतीय जन मानस के लिए एक स्वपन बन कर रह जाएगा।
Monday, August 1, 2011
क्या सभ्यता से असभ्यता की ओर ?
क्या सभ्यता से असभ्यता की ओर ?
दिनांकः-1/8/2011
बेशर्मी का मोर्चा यानी स्लटवॉक महिला उत्पीड़न के विरूद्ध कल दिल्ली की सडकों पर लडकियां बेशर्मी का मोर्चा यानी स्लटवॉक निकाला। इस प्रदर्शन मे लड़कियां कम और लड़के ज्यादा नजर आ रहे थे। आज से तीस-चालीस साल पहले से विदेशी लोग भारतीय पहनावा अपनाते व पसंद करते रहे हैं वतौर जव्लंत उदाहरण स्वरुप हमारे देश की कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनियां गाँधी स्वंय एक विदेशी महीला है या थी लेकिन उन्होने आज हमारे भारतीय स्त्रीयो की परिधान को ही अपने लिए चुना खैर इसका जो भी कारण रहा हो यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन हम भारतीय लोग आज विदेशी पहनावे और संस्कारो को अपनाते चले जा रहे हैं इसका अर्थ यह हुआ कि विश्व की जो सभ्यताएं बहुत बाद से विकसित हुई वहां के लोग बहुत समय पूर्व लगभग या कहें नंगे ही रहा करते थे वे लोग आज सभ्य समाज और पहना ओड़ना सीख गए हैं और ठिक इसके विपरीत भारत के लोग विशेष कर महिलाएं अपने कपड़े कम करती ही चली जा रही हैं। भारतीय नारी और उसकी सौम्यता का दूनिया भर मे चर्चाएं होती रहती है। लेकिन आज हमारा समाज आधुनिकता और दूसरो की नकल करके वैसा ही दिखने और बनने के नाम पर सभ्यता और शालीनता की ईती श्री करता चला जा रहा हैं और कल तक इस मामले मे सभ्य और उत्कृष्ठ कहलाने वाला यही समाज नकलची बंदर जैसे संबोधनो से पुकारा जाए तो क्या हमारा देश या हमलोग एक सभ्य देश के सभ्य नागरीक कहलाने के हकदार रह जाएंगे। आखिर कार बंन्दर तो एक जंगली या जानवर ही है फिर भी ये देखिए जो पहना ओड़ना नही जानते थे उन्होने हमारा पहनना ओढ़ना सिख लिया और हम अपने सांस्कृतिक भेष-भूषा का परित्याग कर दूसरे देश की सांस्कृतिक और भेष-भूषा अपना कर यह समझ रहे हैं कि हमने बहुत तरक्की कर ली है वास्तव मे इस तरह क्या हम तरक्की कर लेगें या हो जाएगा, जबकि ऐसा कदापि नही वास्तव मे कल और आज तक हम और हमारे देश की लड़कियां, महिलाएं और माँतए एक सभ्य और संसकारी ही समझी जाती रही हैं और समझी जाती रहेंगी यह तभी संभव होगा जब हम अपने आने वाले पिढ़ी को भारतीय संस्कार और संस्कृती से परीचित कराए और उनके अन्दर इसे कूट- कूट के भर दें नही तो -जिन लोगों का समाज और लोग सभ्य कहलाए जाते रहें वही समाज आज असभ्यता को अपना कर अपने आपको, समाज एवं भारतीय संस्कृती को पतन की ओर ले जाने मे कोई कसर नही छोड़ेगें। फिर भी क्या हमारे समाज और समाज के लोगों उन्नत ही कहलाएगें ? इस पर मुझे एक घटना याद है जो संक्षेप मे इस तरह से है आज से लगभग तिस-पैतिस साल पहले जब शायद आज के तुलना मे हमारा देश और देश वासी उन्नत नही हुआ करते थे मेरे छोटी बहन की एक सहेली जो हमारे याँहा अक्सर आया-जाया करती थी, हम उम्र होने के कारण मेरी बहन और उस मे बहुत ही घनिष्टता हुआ करता था। मै मेरी बहन की सहेली के ऊपरी दिखावे की बात मै कर रहा हुं कि बह दूबली पतली और संबली तो थी ही ऊपर से उसके आँख के ऊपर की भौंए बहुत मोटी होने की बजह से उसका चेहरा देखने मे बहुत भद्दी लगती थी उसे न जाने कहाँ से वियूटी पार्लर की बात पता चल गई उसने अन्न-फन्न अपनी भौं को कटा कर नुकिली एवं संवार लिया महीनो गुजर जाने के बाद एक दिन अचानक बह हमारे घर पर आई तो उसका चेहरा बिल्कुल बदला-बदला सा लग रहा था इस पर मेरी बहन ने उससे उसके बदले हुए चेहरे का कारण पुछा तो उसने बताया कि देखो फलाने तुम अपनी मम्मी से या किसी और से इसका जिक्र न करना कि तुम्हारी आँख की ऊपर की भौंए भी बहुत भद्दी लगती है तुम भी मेरी तरह अपनी भौं कटवा लो तो तुम भी बहुत अच्छी और मेरी तरह खुबसूरत लगने लगोगी। जबकि प्राकृतिक रुप से मेरी बहन की भौं नुकीली एवं सुन्दर थी। इस पर मेरी बहन ने कहा कि भौं कटवाने के लिए क्या करना पड़ेगा इस पर बहन की सहेली ने उससे कहा कि देखो हम अपने आप तो आपनी भौं काट नही सकते हैं इसके लिए तुम्हे किसी व्यूटि पार्लर मे जाना होगा और वहाँ इस काम के लिए सौ रुपये देना होगा। अरे बाप रे बाप इतने रुपए मै कहाँ से लाउंगी अगर पिता जी से कहा तो कल ही बह मुझे घर से बाहर निकाल देंगे ऊपर से पिटाई अलग होगी नही-नही रहने दो मुझे भौं नही कटवाने हैं। आज से तीस-पैंतिस साल पहले सौ रुपये बहुत मूल्य रखते थे और व्यूटी पार्लर शहर मे इक्का-दूक्का ही हुआ करता था। मेरी बहन की सहेली बहन को बहुत फूसलाती रही परन्तु जब मेरी बहन किसी तरह उसके बहकावे मे नही आई तो उसने एक युक्ति निकाली कि देखो मै पार्लर मे कैसे भौं काटते है इसे देखते-देखते बहुत कुछ मै करना सिख गई हुँ अगर तुम चाहो तो मै खुद ही तुम्हारी भौं को सेट कर सकती हुँ। यह सुन कर मेरी बहन बहुत खुश हुई लेकिन भौं काटने के लिए कैंची और कंघी की जरुरत तो होगी ही इस समस्या का हल ऐसे निकाला, मेरी बहन ने अपनी सहेली को बताया जब मेरे पिता जी अपने नौकरी पर चले जाएंगे तो मै उनकी मोंछ काटने वाली कैंची और छोटी कंघी उनके दाढ़ी बनाने वाले झोले मे से निकाल लूंगी। लेकिन दूसरी समस्या यह है कि बैठा कहां जाएगा इस पर बहन की सहेली ने कहा की परसों मेरे म्मी पापा बजार करने के लिए घर से निकलेगें उस वक्त मेरे घर पर कोई नही होगा तुम मेरे घर पर आ जाना इस तरह बहन की सहेली ने भौं बनाने का प्रोग्राम तय किया, और जल्दि से अपनी बात समाप्त कर थोड़ी देर बाद मै फिर आऊंगी कह कर बह अपने घर चली गई दूसरे दिन शाम को मुझे मेरी बहना का चेहरा कुछ अजीबोगरीब या कहें बदला-बदला सा लगा। घर का सबसे छोटा सदस्य होने के कारण मै सबका दूलारा था मुझसे बड़े अन्य भाई-बहने मुझे सहसा डांटने फटकारने की हिमाकत नही करते थे, मेरे मूहँ से अचानक निकल पड़ा कि दिदी आज तुम बंदरीयां जैसी क्यो लग रही हो, यह तुम्हारे चेहरे को क्या हो गया यह कहते हुए मै चिल्ला पड़ा कि देखो-देखो मम्मी आज ये बंदरीयां जैसी लग रही है, जरा जल्दि आ कर इसे देखो तो, बस मेरा इतना कहना था कि माँ अपने किचन मे ही खड़ी-खड़ी एक झलक बहन पर डाल कर चिल्लाई कि वास्तब मे यह सही कह रहा है तुम्हारा चेहरा आज बहुत विकृत लग रहा है ये तुमने अपने भौंए क्यों कहां से और कैसे कटवा लिए किसने कहा था माँ का इतना कहना था कि बह रोते हुए बोली कि बह जो मेरी सहेली आती है न उसने अपनी भौं कही पर कटवाया था, लेकिन मैने जब पैसे देकर अपनी भौं संवारने के लिए मना कर दिया तो उसने खुद ही मेरी भौं संवार कर सुंदर बना दिया। इस पर माँ बोली कि अपने आप को सुन्दर मान लेने से या अपने आप कहने से व्यक्ति सुंदर नही हो जाता है प्रकृतिक रुप से जो जैसा है वैसे ही सुंदर है बनावटी सुंदरता तो क्षणिक समय को लिए होता है तन की सुंदरता तो क्षणभंगूर है मन और सोच मे सुंदरता ही मनुष्य की वास्तविक सुंदरता है। मात्र शरिर पर के कपड़े कम कर लेने या कम करने के लिए रोकना मात्र से महिला उत्पीडन का मापदंड नही हो सकता है बात रह गई लड़कियों महीलों से छेड़छाड़ और छीटाकशी की बात है हम सब सामाजिक प्राणी हैं और इस समाज से बाहर रह कर नही जी सकते है हमारे समाज के लोग जैसा पहनावा पहनते जो बढिया से बढिया खाते पीते हैं उसका ही हम सब अनुसरण करते हैं। समाज से हट कर अगर कुछ अनहोनी तरह से बोलना खाना पिना ओढ़ना चाहें तो हम खुद ही अपने समाज से कट जाएंगें इस तरह तो समाज के मुख्य धारा से कटे हुए लोगों को समाज से बाहर जंगल मे निवास करना पड़ेगा। समाज की बत तो दूर हम अपनी ही उन्नती को संकीर्ण करते चले जाएंगे। जब मनुष्य कपड़े बुनना नही जानता था तब सभी लोग पेड़ के पत्तों से शरीर की नंगनता को ढकते थे यह बात अलग है कि वर्तमान समय मे पेड़ पौघे कम होते जा रहे है और उसकी जगह मशीनो कारखानो ने ले लिया। प्रकृति के नियमानुसार समय अपने आप को दोहराता है, तो क्या आज मनुष्य उसी दौर मे पुनः प्रवेश कर रहा है, कर चुका है या करने वाला है?
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